रक्षाबंधन बंधन न्यूज़ ; रक्षाबंधन का पर्व क्यों है खास ?

 

रक्षाबंधन बंधन न्यूज़ ;   पूजा पपनेजा।

 

रक्षाबंधन हिन्दू संस्कृति में एक महत्वपूर्ण और प्रिय त्योहार है। यह त्योहार भाई-बहन के आपसी प्रेम, सम्बंध को मजबूत करता है। रक्षाबंधन के दिन, बहन अपने भाई को सिर्फ राखी ही नहीं बाँधती बल्कि उनकी लंबी आयु के लिये प्रार्थना भी करती है। इस दिन बदले में भाई भी अपनी बहनों को तोहफे देते हैं और हर हाल में उनका साथ निभाने का वादा करते हैं।

वही इसको गहराई से समझने का प्रयास करे तो रक्षाबंधन एक ऐसा दिन है जो हर किसी भाई – बहन को उनके बचपन की यादों में ले जाता है । इस दिन भाई की शरारतें, बहन की नाराज़गी, त्योहार की तैयारियां और वो खास मिठाइयां, जैसे सब कुछ फिर से सामने आ जाता है । बल्कि इस दिन सिर्फ धागा नहीं बंधता, एक भरोसा बंधता है कि चाहे कितनी ही दूरियां क्यों न हों, भाई बहन का प्यार हमेशा बना रहेगा। क्योंकि रक्षाबंधन का मतलब सिर्फ परंपरा निभाना नहीं, है बल्कि रिश्तों को नए सिरे से महसूस करना भी है।

  • रक्षाबंधन मनाने के पीछे की कहानी क्या है ?

इस त्योहार को मनाने के पीछे बहुत सारे कारण माने जाते है , और इसके साथ ही पौराणिक कथाओं में भी इसका जिक्र किया गया है अब आइए आपको बताते है वो खास कहानियाँ —-

  •   महाभारत की वह प्रसिद्ध घटना जब द्रौपदी ने बाँधी थी कृष्ण की उँगली पर पट्टी

रक्षाबंधन के पावन पर्व से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा महाभारत काल की है। जिसमे भगवान कृष्ण द्रौपदी को अपनी बहन के समान मानते थे। एक बार जब श्रीकृष्ण की उँगली से खून बह रहा था, तो द्रौपदी ने तुरंत उस समय अपनी साड़ी का आँचल फाड़कर उनकी उँगली पर बाँध दिया। इससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें आजीवन रक्षा का वचन दिया। इसलिए जब कौरव सभा में द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था, तब भगवान कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से द्रौपदी की लाज बचाई थी। इस कथा की मान्यता यह है कि इसी घटना के बाद से रक्षाबंधन का त्योहार बहुत प्रचलित हो गया।

  •  पौराणिक कथा: जब देवी लक्ष्मी ने बाँधी थी राजा बाली को राखी

रक्षाबंधन से जुड़ी एक अनोखी कथा देवी लक्ष्मी और दानवराज बाली के बीच हुए वचन से भी जुड़ी है। राजा बाली भगवान विष्णु का परम भक्त था, जिसके कारण भगवान ने उसे अजेय होने का वरदान दिया था। बाली की रक्षा के लिए स्वयं विष्णुजी उसके द्वारपाल बनकर पाताल लोक में रहने लगे। इस वजह से देवी लक्ष्मी विष्णु से दूर वैकुंठ में अकेली रह गईं। तब उस समय माता लक्ष्मी ने एक युक्ति सोची। वे एक साधारण स्त्री का रूप धारण करके बाली के पास पहुँचीं और उससे आश्रय माँगा जिसके बाद बाली ने उन्हें अपनी बहन मानकर महल में स्थान दिया। तभी देवी लक्ष्मी के वहाँ रहने से बाली के राज्य में धन-धान्य की वृद्धि होने लगी।

फिर सावन पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी ने बाली की कलाई पर रक्षासूत्र बाँधा और उनकी सलामती की कामना की। उसे प्रसन्न होकर बाली ने उनसे वर माँगने को कहा। तब देवी लक्ष्मी ने द्वार पर खड़े उनके सेवक (भगवान विष्णु) को इंगित करते हुए अपना असली रूप प्रकट किया। तभी बाली ने समझ लिया कि यह सब लीला उन्हें वापस ले जाने के लिए थी। जिसके बाद वचनबद्ध होने के कारण उसने भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी के साथ वैकुंठ लौटने की अनुमति दे दी। इस कथा की मान्यता  है कि इसी दिन से रक्षाबंधन का पर्व प्रारंभ हुआ, जहाँ बहनें भाइयों को राखी बाँधकर उनकी सलामती की प्रार्थना करती हैं और भाई उनकी रक्षा का वचन देते हैं। यह कथा भाई-बहन के पवित्र बंधन और विश्वास की गहरी अभिव्यक्ति है

  •   ऐतिहासिक गाथा: रानी कर्णावती और हुमायूँ की राखी

रक्षाबंधन के इतिहास में रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ की कहानी एक महत्वपूर्ण घटना है। मेवाड़ की वीरांगना रानी कर्णावती, महाराणा सांगा की पत्नी थीं। जब गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया, तो राणा सांगा युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए। विपत्ति के उस घड़ी में, रानी कर्णावती ने अपने राज्य की रक्षा के लिए एक असाधारण कदम उठाया।

उन्होंने मुगल सम्राट हुमायूँ को एक पत्र के साथ राखी भेजकर उनसे सहायता माँगी। हुमायूँ ने राखी को भाई का धर्म समझते हुए तुरंत मेवाड़ की ओर कूच किया, लेकिन दुर्भाग्य से वह राखी देर से पहुँची थी। जब तक हुमायूँ अपनी सेना के साथ मेवाड़ पहुँचे, तब तक रानी कर्णावती ने अपनी और अन्य राजपूत महिलाओं की इज्ज़त बचाने के लिए जौहर (सामूहिक आत्मबलिदान) कर लिया था, और उस समय बहादुर शाह ने मेवाड़ पर अधिकार कर लिया था।

हालाँकि, हुमायूँ ने अपनी बहन का सम्मान रखते हुए बाद में बहादुर शाह से युद्ध किया और मेवाड़ को उसके आक्रमणकारी शासन से मुक्त कराया। यह घटना रक्षाबंधन के पवित्र बंधन की ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाती है, जहाँ एक राखी ने एक शासक को अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए प्रेरित किया। आज भी यह कहानी भाई-बहन के निस्वार्थ प्रेम और साहसिक बलिदान की याद दिलाती है, जो रक्षाबंधन के त्योहार को और भी विशेष बनाती है।

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