कविता ;प्राप्ति


गाँव में घर के सामने
पीपल वृक्ष की

धनी छाँव में
बैठा करता था

पगड़ी बाँधकर।
दौलत मंद था।

लोग सुनते थे
मैं बोलता था।

अब दौलत नहीं है।
लोग भी नहीं हैं।

सुबह शाम सुनता हूँ
हवाओं का गुनगुनाना ,

चिड़ियों का चहचहाना।
देखता हूँ ,

डालियों का अभिवादन
पत्तियों का आलिंगन

सूँघता हूँ
धूप छाँव की

गरम ठंढ़ी सुगंध।
पूछता हूँ पत्नी से

क्या ये सब
तब भी थे ?

हां , सुनकर पत्नी से
गर्दन झुक जाती है।

एक हँसी आती है।
मुझको रुलाती है।

रो – रो कर करता हूँ।

प्रभु से गुहार।

कर दो बुढ़ापे में
आयु का विस्तार।

उपयुक्त पक्तियां इन्द्रधनुष पुस्तक बी एन झा द्वारा द्वारा लिखी गई हैं।

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