इक दिल में भी इक दिल है

 

क्यूं बतलाएं सबको कि
इस दिल में भी इक दिल है ?
नजरों का ये पानी उस सागर का साहिल है।

बेशक जंजीर हजारों हैं , पर कदम नहीं हारे हैं ,
वो तस्वीर नजर में है कि कदमों में मंजिल है।

जब कत्ल हुआ था सपनों का ,
उम्मीदों की बलि चढ़ी ,
जो कभी – कभी रो पड़ते हैं ,

ये जख्म वही हासिल हैं।
जो सपनों के खेतिहर थे ,

सब पढ़ – लिख ऊंचे बन बैठे ,
क्या कर लें इस आदत का

कि हम अब भी जाहिल हैं।
सोचा था इल्जाम धरेंगे ,

ख्वाबों के कातिल पर ,
देखा तो कुछ सहम गये ,
सब अपने उनमें शामिल हैं।

एक अदालत ऊपर भी तो
लगती है ये सुना है ,

संघर्ष वहीं ये देखेंगे
कि कौन हमारा कातिल है।