मकान छोटे हो या बड़े
साधारण हो या भव्य
मैंने उनमें लगे संरक्षक
बरसाती की ओर देखा है
करुणा भरी नजरों से।
इस संतरी की पीठ पर लदे
अक्सर आपको मिलेंगे
कुछ टूटे फुटे गमले
कुछ खाली डब्बे
कुछ टूटी फूटी
उपेक्षित गृह सामग्रियाँ
महत्वकाँक्षी मकान
निर्माण की – तारीख से
खड़ा रहने तलक
हर घटना के साथ
इतिहास के पृष्ट रँगवाता है।
यहाँ तक कि विध्वंश होने का
श्रेय भी वही ले जाता है।
छत में दरारे पड़ती है
दीवारों में छेद होते हैं
बरसाती में क्या होता है ?
उसे क्या होगा भला ?
मजदूर भी क्या बीमार पड़ते हैं ?
संतरी का बदन हट्टा – कट्टा होता है।
वह मौन संरक्षक
अपने मौन की आवाज देकर
बताता है ,
मुझे इतिहास मत दो।
पर इतनी कृपा करो
मेरी पीठ पर से
कचरे तो उतार लो।
उपयुक्त पक्तियां इन्द्रधनुष पुस्तक बी एन झा द्वारा द्वारा लिखी गई हैं।