दूसरा कैसे यहाँ बेईमान है ?

लौट जाते बज्म से खामोश जो
हाय उनकी मंच पर क्या शान है ?

कल मिला वो गर्मजोशी से मगर
आज मुझको कह रहा शैतान है।

पीठ पीछे दोस्तों ने ही ठगे
दुशमनों की ये नहीं पहचान है।

बागवां ने ही गिने कुछ फूल कम
दूसरा कैसे यहाँ बेईमान है ?

दिख रही है राख की यह ढेर क्या ?
जिन्दगी का यह बुझा अरमान है।

उपयुक्त पक्तियां इन्द्रधनुष पुस्तक बी एन झा द्वारा द्वारा लिखी गई हैं।