वट सावित्री का व्रत क्यों है खास

पूजा पपनेजा।

हिन्दू धर्म में वट सावित्री का व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है और इस दिन सभी विवाहित महिलाएं मिलकर बरगद के पेड़ की पूजा करती है। अपने पति के लिए लम्बी उम्र की कामना करती है। मान्यता के अनुसार बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों का वास माना गया है। इसलिए इसे देववृक्ष भी कहा जाता है। इस दिन विवाहित महिलाओं को अपने ससुराल से वस्त्र बर्तन , फल व मिठाई प्राप्त होती है जिसे लेकर वह अपने पति के लिए व्रत करती है। यह पर्व पति एव पत्नी के प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।

वट सावित्री की कथा क्या है ?

बहुत समय पहले की बात है। भद्रदेश नामक राज्य में अश्वपत नाम के राजा और उनकी रानी मालवती रहते थे। उनके घर मे एक सुंदर और तेजस्वी कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा। वह बहुत बुद्धिमान, धर्मपरायण और सुंदर थी। जब सावित्री विवाह योग्य हुई, तो उसके पिता ने उसे स्वयं वर चुनने की अनुमति दी। सावित्री ने सत्यवान नामक एक राजकुमार को अपना वर चुना। सत्यवान एक वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे, जो किसी कारणवश अपना राज्य खो चुके थे और वन में ही रहते थे। लेकिन एक बात जिसने सबको चिंतित कर दिया वह यह थी कि एक भविष्यवाणी के अनुसार सत्यवान की मृत्यु एक साल के भीतर हो जाएगी। लेकिन सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रही और सत्यवान से विवाह कर लिया।
विवाह के बाद सावित्री अपने पति और सास-ससुर के साथ वन में रहने लगी। वह बहुत सेवा भाव से सबका ध्यान रखती थी। जिस दिन सत्यवान की मृत्यु होनी थी, उस दिन सावित्री ने व्रत रखा और वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा की। जब सत्यवान लकड़ियां काटने जंगल गया, तो सावित्री भी उसके साथ गई। थोड़ी देर बाद सत्यवान के सिर में दर्द हुआ और वह सावित्री की गोद में लेट गया। तभी यमराज, मृत्यु के देवता, उसकी आत्मा लेने आए। सावित्री ने यमराज का पीछा किया और उनसे सत्यवान की आत्मा वापस देने की प्रार्थना की। यमराज ने कहा कि यह नियम के विरुद्ध है, लेकिन सावित्री की बुद्धिमानी, प्रेम और दृढ़ संकल्प देखकर वे प्रसन्न हो गए। उन्होंने सावित्री को तीन वर मांगने का अवसर दिया। जिसमे सावित्री ने पहले अपने ससुर का राज्य वापस मांगा, फिर अपने सास-ससुर की आंखों की रोशनी, और अंत में अपने लिए सौ पुत्र मांगे। जिसके बाद यमराज ने बिना सोचे समझे उसे वर दे दिए, लेकिन जब सावित्री ने सौ पुत्रों की बात कही तो यमराज को समझ आया कि बिना सत्यवान के यह संभव नहीं है। उन्होंने सावित्री की दृढ़ता को सराहा और सत्यवान को जीवनदान दे दिया। इस तरह सावित्री के प्रेम और तप से सत्यवान की मृत्यु टल गई। तभी से महिलाएं सावित्री की तरह अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत करती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं, जो दीर्घायु और अटल प्रेम का प्रतीक माना जाता है।