जीऐगे जब तलक , औरों के काम आएंगे

जीऐगे जब तलक ,औरों के काम आऐंगे।
हर मुसीबत में आप हमको साथ पाऐंगे
काश बेनूर उजालों को चमक दे पाते
दर्द की स्याही को , खुशियों की धनक दे पाते
आज इन्सानियत को , रूह से एहसास कर लें
अश्क मुफ़लिस के पोंछ, सुबह का आगाज कर लें।
यही एहसास हम , हर दिल को दिए जायेंगे।
दर्द का सैलाब पहुँचा आँखों की कोरों तलक
आह की फरियाद पहुँची , दिल से ,जब होठों तलक
इक चुभन जज़्बातों में है , वक्त के गहरे निशां
बनके मरहम , हम सभी जख्मों , को भरते जाऐगे
काश वो जानते , हम उनके गम में शामिल है।
उनकी आँखों की नमी हैं , हमारी आखों में
उनके हर दर्द का एहसास , हवाओं में धुला
उनके जख्मों की कसक है हमारी सासों में
हम अपनी खुशियाँ , उनके गम से बदल लाऐगे।

उपयुक्त पंक्तियां रजनी सैनी सहर की लिखित पुस्तक परिधि से पहचान तक से ली गई है।