तुमको देखूं नजरें फेरु,
मेरे बस की बात नहीं
झूठी दलीलों से दिल घेरु ,
मेरे बस की बात नहीं।
मुझसे ना हो पाएगा कि
राहें बदलूं चाहें बदलूं
जो यादों संग आती हैं ,
मैं वो सारी आहें बदलूं।
कहो ना मुझसे मैं वो दिन , पल
हुई जो तुमसे बातें भूलूं
कहो ना मुझसे मैं वो हंसना
अपनों जैसे नाते भूलू।
कैसे कह दूं सागर से मैं
नदी को खुद से दूर करे
कैसे अपनी सांसो को
कोई ऐसे मजबूत करे।
यूं भी कैसे होता है कि
दिन से उसका सूरज छीनो
पहले नींदे कत्ल करो
फिर टुकड़े – टुकड़े सपने बीनो।
मुझसे ना हो पाएगा कि
दर्द भी और हंसना भी हो
पहले भावों में बह जाऊ
फिर कदमों को कसना भी हो।
उपयुक्त पंक्तियां अमित तिवारी द्वारा लिखी गई है।