बहुत आगे निकल आए हम सब,
अब जो चाहे वो मिल जाता है
मन में सवाल उठने से पहले ही ,
जवाब हाथों में मिल जाता है —
इसी उलझन में एक दिन यूँ ही —
सुबह खिड़की से झांका तो ,
नज़रें सिमटकर रह गई —
आसमां को नापने की चाह ,
ईमारतो से ढ़क गई —
इन ईमारतो ने इस विशाल गगन को,
यूँ ढ़क लिया ,
एक बादल तक न देख सका मैं —
इन्हीं ईमारतो में ,
आसमां के अनगिनत तारे भी लुप्त हो जाते हैं —
न जाने कैसे इन ईमारतो में यह ,
विशाल आसमान छिप जाता है
बहुत आगे निकल आए हम सब
हम जो चाहें क्या मिल पाता है —-?
उपयुक्त पंक्तियां ईशित कुमार द्वारा लिखी गई हैं।