मैं असीमित शक्तियों को स्रोत हूँ ये मानकर

मैं असीमित शक्तियों को स्रोत हूँ ये मानकर
मैं निरन्तर प्रगति के पथ पर हुई हूँ अग्रसर
प्रेरणा खुद से मैं लेती , टूटता विश्वास जब भी
जिस डगर पर मैं चली , है कंटकों का साथ अब भी
मैं रहस्यों पर से पर्दा , अब हटाना चाहती हूँ
ज़िन्दगी को मर्म , खुशियों का बताना चाहती हूँ
बन के याचक , याचना कर , चुन लिए अनुभव सभी
अब सफलताओं की दौलत , मैं लुटाना चाहती हूँ
मैं नहीं विचलित हुई , था सकंटो का साथ जब भी
मैं रही जींवत तब भी जब विषमताओं में थी ,
मेरी पलकों में असीमित स्वपनों की थी श्रखंला
कितने ही उत्पीड़नों से , छलनी थी , धरती ह्रदय की
अनगिनत उपहासों से , भयमुक्त पग आगे चला
मैं धीर और गम्भीर हूँ है झंझटो का साथ अब भी

उपयुक्त पंक्तियां रजनी सैनी सहर की लिखित पुस्तक परिधि से पहचान तक से ली गई है।