बोलती सड़क

मैं सड़क हूँ चलती फिरती बिना हाथ पैरों की
मैं सड़क हूँ। मुझे पता ही नहीं कि मैं सोई कब
बच्चे मेरे रिमोट लेकर ,
दौडाते हैं , गाड़ियाँ सब , मैं , सड़क हूँ।
शोर मेरा गहना बनकर ,
घटनाएँ आए दिन नई साड़ियाँ पहनती हैं ,
मैं सड़क हूँ।
कभी राजनीतिक ,कभी फ़िल्मी दुनियाँ, बनती हैं ,
मेरे आँचल में ,
रास्ता राह बनाती हूँ मैं,
फिर क्यूँ गंदा कर जाते हैं
थूक कर मेरे कपड़ों पर
मैं सड़क हूँ।

उपयुक्त पंक्तियां अनीता प्रजापति द्वारा लिखी गई हैं।