कलम बहुत दिनों से

कलम बहुत दिनों से रोना भूल बैठी है।
दर्द में पलकें भिगोना भूल बैठी है।
आंसुओ का सिलसिला भी ग़ुम हुआ हैं।
उनींदी ये आँखे सोना भूल बैठी हैं।
उसने जाने क्यों वफ़ा का रूख बना लिया।
मेरा दिल है एक खिलौना ,भूल बैठी है।
उसकी वफ़ा का आलम ऐसा , सपने भूल गए।
नींदे भी पलकों का बिछौना भूल बैठी है।

विकल्प मीमांसा