तन किया तुम्हें अर्पण अर्पण

तन किया तुम्हें अर्पण अर्पण
मन चमका वन दर्पण दर्पण
स्मृति सरवर में देर देर
सुधि – सरित लहर में हेर हेर
मैं थकी हो गई चूर चूर
हे प्राण रहे क्यों दूर दूर
अब सुख – सरिता के तीर नहीं
हो गए नयन मधुबन मधुबन
तन किया तुम्हें अर्पण अर्पण
जग सुनता छम – छम पायल की
पर पीड़ नहीं इस घायल की
दौड़ी हर आहट बुला गई
कंगन की खन – खन रुला गई
पायल कंगन अब साज बने
संगीत बनी धड़कन धड़कन
तन किया तुम्हें अर्पण अर्पण
पी कहाँ , पपीहा चिहुकी थी
बिन पिया कोकिला कुहकी थी
पी कहाँ न बोली लाज आई
कुहकी तो रोगी कहलाई
निज को भूली सिमटी तुझमें
अब लाज बनी सिहरन सिहरन
तन किया तुम्हें अर्पण अर्पण
सिंदूर मॉंग में जलता था
काजल संग अश्रु उबलता था
गालों पर बाली का दोलन
कर जाता पीड़ा का वर्धन
अब पीड़ा , बन कपूर उड़ी
हर साँस बनी चंदन चंदन
तन किया तुम्हें अर्पण अर्पण
अधरों की प्याली थी खाली
मुख पर अनुपस्थित थी लाली
वाणी थी मेरी शब्दहीन
था लिया कोई सौन्दर्य छीन
रीती थी तब , मै पूर्ण हुई
अब नेह हुई बदन – बदन
तन किया तुम्हें अर्पण अर्पण
मन चमका बन दर्पण दर्पण

उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।