जब भी मिलती है हमें खुशी है तो नाम हम आपका जो ले लेंगे
वो बड़े ही उदास होते है आप है दोस्त आप रूठेंगे।
जब कभी हम जो मुस्कुराते है , आज तक अपनी ही नासमझी से
हाय वो जार जार रोते है, दोस्त हम रोज रोज खोते है।
वो तो बस वो है दूसरा कोई जब भी मिलती हमें खुशी है तो
नाम उनका तो हम छुपाते है वो बड़े ही उदास होते है।
आप लेते है और दिलचस्पी दोस्त है क्योकि संग खाते है ?
जब कोई नाम हम बताते है, या के घर मे वो रोज आते है ?
आप जतला के खूब हमदर्दी ये है सब कामचलाऊ साथी
अपनी आँखों को भी भिगोते है जो सदा थौक मे मिल जाते हैं।
जब भी मिलती हमें खुशी है तो हम तो जागेगे फलक के नीचे
वो बड़े ही उदास होते है चैन से ये घरों मे सोते हैं।
आप कल भी तो घर मे आए थे जब भी मिलते हमें खुशी है तो
देर तक गुफ्तगू किया हमने वो बड़े ही उदास होते है।
कौन , ये वो ,? फिर आपने पूछा दोस्त , सुनिए, न कोई होता है।
तीसरा नाम ले लिया हमने और होता तो एक होता है।
आपने ये कहा जहाँ – वाले दो अगर हो महाधनी है आप
बीज नफरत के सिर्फ बोते है तीसरा दोस्त नहीं होता है।
जब भी मिलती हमें खुशी है तो दिल की है, शक्ल एक सीपी सी
वो बड़े ही उदास होते है, एक इसमें या दो समोते है।
आज भी आप जानते है हम जब भी मिलती हमें खुशी है तो
कौन , ये वो , है ? फिर से पूछेगे वो बड़े ही उदास होते हैं।
उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।