मज़ा और ही कुछ है,

हमको न आप इस कदर खुलके निहारिये।
कुछ ताक – झांक हो तो मज़ा और ही कुछ है.
ऐसे तो एक बार ही होते है ,कत्ल हम ।
रूक रूक के मारिए तो क़ज़ा और ही कुछ है।
मीठे है बोल, आपके क्या जानते न हम ?
चुप रहके दीजिए, तो सज़ा और ही कुछ है।
हाथो से छुआ क्या छुआ और वो भी रूबरू ।
साँसो से बाँधने की फजा और ही कुछ है ,
इन वादियों मे आप है, और चुप है हवाये –
चलिए यहाँ से इनकी रजा, और ही कुछ है।