तुम जब भी आसमान की ओर देखकर एक तारे को ढ़ूंढ़ते हो…

तुम जब भी आसमान की ओर देखकर एक तारे को ढ़ूंढ़ते हो,

मैं तुरंत समझ जाता हूं तुम्हारे अंदर वीरानी सुलग रही है….

तलाश करते हो शून्य में अपने और अपनों के वजूद की,

इस जीवन के सत्य की लालसा फिर लेने लगती हैं हिलोरें,

मन आहिस्ता आहिस्ता करीब जाकर भी लौटने लगता है….

मायूसी सी छाने लगती है जब घिरने लगते हैं बादल,

और बादलों की ओट में….

तारों की तरह तुम्हारी तलाश भी कहीं छिप जाती है।।

गुलाबी