मेरी माता ने मुझको सिखाया गर्दन झुकाना।
बेटे तुम जीवन की कुछ क्षण की बात है।
बड़ी बड़ी – आंधी मे वो गुजर जाएगा।
सीधा खड़ा रहना तुम फिर तन जाओगे।
कभी नहीं डरना खड़े हो पाओगे।
होगा पर खतरा दोनों संसार मे।
तुम्हारे टूट जाने का गुजर चुके है अब।
दिखाना न पीठ और मै भी देखिए न।
टूट जाना। होशियार कितना हूँ।
पिताजी कहते थे अपने जीवनपथ पर।
नहीं बेटे परस्पर विरोधी।
तुम्हारी माँ की सीख दोनों की सीख को
मूर्खता ही होगी। बखूबी निभाता हूँ।
जब भी आंधी चले सिद्धान्त के धरातल पर।
भयंकर तूफ़ान उठे पूजनीया माता की।
तो बेत की तरह व्यवहारिता के भूतल पर।
थोड़ा लचक जाना। पूज्यवर पिताजी का।
उपर्युक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।