जाड़ा तुम्हारी बहन का
तुम धन्य हो आगमन हो गया है।
यधपि तुम्हारे राज्य मे हम तो किसी तरह
लोग मर जाते है बचा भी लेंगे
रात के अंधेरे मे बची – खुची इज्जत।
दाँत खटखाकर। पर हमसे भी नीचे
पर तुम्हारी सहोदर निम्नवर्गियो की
गर्मी के राज्य मे नवयौवनाओ का
प्राण छोड़ जाते है अभिशप्त यौवन।
दिन के उजाले मे पकी कपास की डोडी की तरह
लोग छटपटाकर। इच इच पर कटी फटी उनकी
तुम सिसकाते हो। अंगिया व चोली से
वो तड़पाती है। झांकते जिस्म।
नारी जो है। मनचलों की आवाज़े ,
और हम मध्यमवर्गी तथाकथित सभ्रांतों के
आधे स्वस्थ नहीं देखने का
आधे रोगी। खूबसूरत अभिनय।
वेतन भोगी। और कमर से बंधी
हमारे सीने पर पेट पर दो गज का पारदर्शी कफ़न।
बाँह और पीठ पर उफ़ आह।
कटे -फटे कमीज़ों एक्स किरणों की तरह
और पेंन्ट के पीछे घुसती निगाहें।
अनगिनत पैबंदो से अनावृत करता मन।
दिखती गरीबो को निकलते जीभ।
एक मोटी चादर या टपकती लारे।
कोट मे छिपाते हो। धन्य हो तुम ही
इज्जत बचाते हो। धन्य तेरी चादर।
और सुनो – धन्य तेरा कोटा।
स्वर्गीय विनोदा नन्द झा