जीवन-मृत्यु
जिन्दगी के पल बढ़ते हैं
जितने
मरते जाते हैं हम
उतने
फिर क्यों सिखाया जाता हमें
कि दो है
जीवन और मृत्यु
जीवन बढ़ता जाता है
भविष्यत घटता जाता है
वर्तमान के रास्ते
भूत होता जाता है।
मृत्यु बनती रहती है।
इस तरह अनवरत।
वर्तमान है कहाँ ?
होगा भी तो
पकड़ कहाँ आता?
वह निष्ठुर
सत्य।
उपर्युकत साहित्यिक रचना स्व. बी.एन.झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।