संबंधों में प्रेम कहां, अब तो रिश्ते अनुबंध हो गए

प्रतिक्षण धूमिल होती स्वासों पर

अवसादों की सांकल है।

पंख विहीन मरणासन्न पंछी

की तरहां तन-मन घायल है।

संबंधों में प्रेम कहां, अब तो रिश्ते अनुबंध हो गए

धन से प्रेरित निहित स्वार्थ में वादों के सौ खण्ड हो गए

आज किसी की उंगली थामी, कल थामा नवीन आंचल है।

प्रेम की अनुभूति पन्नों में, सिमट उलझकर सिसकी लेती

लाभ-हानि के भंवर जाल में मैंने प्रीत भी बिकती देखी

छल प्रपंच के कुंदन से सजती अब श्रद्धा की पायल है।

प्रति दिन मन करता नया शोध, आक्रोशित मन में बढ़े क्रोध

जिसको मैंने सब कुछ माना, भूला सब कुछ वो मन अबोध

तर्क, फर्क में उलझी हूँ मैं, मन प्रतिपल उसका कायल है।

   कविता की रचयिता रजनी सैनी सहर हैं। उनकी लिखित यह कविता परिधि से पहचान तक पुस्तक से साभार ली गई है।