रजनी सैनी
“ सहर “
उठ नई पहचान खुद से आज कर ले
सूर्य की इन रश्मियों से मांग भर ले
बन के तेजस्वी मिटा अज्ञान तमका
कोरी भावुकता का आंचल साफ कर ले।
क्या हुआ जो साथ कोई चल न पाया दो कदम
सोच वो अपना नहीं था, और न उसके थे हम
अपने जैसे और दुखियों में, नया तू जोश भर दे।
तू नहीं आश्रित किसी पर, तू प्रबल विद्रोह कर दे
खुद नए इक नीड़ का निर्माण कर ले।
छिन गया आश्रय तो न विश्राम कर तू मौन रहकर
आंसुओं और सिसकियों को सहजता से मार ठोकर
हौसलों से तू बदल दे दुनिया की हर रूढ़ियों को
कुछ नये आदर्श दे जा आने वाली पीढ़ियों को
कर सुशोभित तू सिन्दूरी रवि से मस्तक लाल कर ले।