सारिका झा
हर साल की तरह इस साल भी शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण पायदान पर चढ़ते हुए अधिकांश बच्चों ने दसवीं और बारहवीं की परीक्षा पास कर ली, और जो नहीं निकल पाये अगली कोशिश में निकालेंगे। ऐसा होता रहा है। इस बार 12वीं की परीक्षा में 92.71 प्रतिशत एवं 10वीं में 94 प्रतिशत छात्र पास हुए। वहीं दोनों परीक्षाओं में लड़कियों के पास होने का प्रतिशत हर बार की तरह ज्यादा है। इसी तरह प्रतिशत की सुने और समझें, तो इस तरह भी वर्गीकरण किया जा सकता है कि आर्ट्स सब्जेक्ट वालों का इतना और साइंस वालों का इतना प्रतिशत, या फिर अन्य को इतना प्रतिशत मिला।
दरअसल, इस प्रतिशत ने ही आज की शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा स्थान बना लिया है, जो किसी छात्र की पूरी जिन्दगी का लेखा-जोखा तैयार कर लेता है। पहले की तरह फर्स्ट, सेकेंड और थर्ड क्लास का कोई रिवाज नहीं है, बल्कि सीबीएसई के छात्रों से 100 प्रतिशत तक की उम्मीद की जाती है। अगर इतना नहीं लाए तो कम से कम 90 या 95 तो लाएंगे ही। इससे कम लेकर आये तो ठीक है, पास कर गये।
जबकि पास करने का नंबर 33 प्रतिशत ही है। लिहाजा, यह जो 40-50 नंबरों का अंतर है, वह यूं ही हो गया। छात्र ने न उसके लिये मेहनत की और न ही अपने भविष्य के बारे में सोचा। यह बातें बच्चों के अभिभावक से लेकर रिश्तेदार बोलते नजर आते हैं। जबकि सच्चाई यही है, कि वह खुद कभी इतने नंबरों के लिये सोच भी नहीं पाये। सोचना जरूरी भी नहीं था, क्योंकि तब अभिभावक ऐसे न थे जैसे आज हैं। उनकी मान-मर्यादा बच्चों के नंबरों पर नहीं टिकी थी, पर अब बात कुछ और है।
अब बच्चों के नंबर, उनकी शिक्षा, उनका तय कैरियर माता-पिता का समाज में ओहदा बढ़ाने का काम कर रहे हैं। अगर इसमें कोई चूक हो गई तो जैसे सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस लग जाती है। अभिभावकों का भी अपना तर्क है।
बच्चों की पढ़ाई के लिये महंगी फीस अभिभावकों की कमर तोड़ देती है, मगर वह पीछे नहीं हटते, ऐसे में बच्चों का प्रदर्शन अगर कम हो जाए तो माता-पिता की उम्मीद पर तो जैसे पानी फिरने लगता है। लेकिन बच्चों से बहुत और अपनी तरह की उम्मीद करना कहां तक जायज है। बारहवीं की परीक्षा में आपका बच्चा कितने प्रतिशत नंबर से पास हुआ इसकी चर्चा करने से कहीं जरूरी अपने बच्चे के हौसले को बढ़ाना है, जो न जाने भविष्य में कितनी और परीक्षाओं से गुजरने वाला है।
हर हार को जीत में बदलने का हुनर और जिन्दगी भर खुशियों से जीने की कला के लिये प्रोत्साहित करना हर माता-पिता का अपने बच्चों के लिये कर्तव्य बनता है। जरा सोचिये, कि अगर आपका बच्चा टॉप कर गया या फिर वह बहुत अच्छे अंकों से पास हुआ, तब आप अपने दोस्तों, रिश्तेदारों के बीच यह बात कहते नहीं थकेंगे, वहीं वह अभिभावक क्या करे जिसका बच्चा मुश्किल से पास हुआ या फिर उसे कम नंबर आये। क्या उनके बच्चे के लिये जिंदगी में कोई और परीक्षा नहीं होगी। जरूर होगी, मगर उसका आत्मविश्वास उसके साथ नहीं होगा, क्योंकि कम नंबर से पास होने पर माता-पिता ने उसका हौसला नहीं बढ़ाया बल्कि उसे उन खर्च का हिसाब मांगा जो उसकी पढ़ाई पर खर्च किये थे।
वास्तव में हम जिस समाज में रहते हैं, वहां शिक्षक, आइएएस, इंजीनियर, डॉक्टर, अकाउंटेंट, बिजनेमेन, नेता, टेक्नीशियन, राइटर, पेंटर, सिंगर प्लंबर, टेक्नीशियन,, इलेक्ट्रिशियन, स्वीपर और न जाने कितने तरह के काम से जुड़े लोग अपनी भूमिका निभाते हैं, तब जाकर हमारी जिंदगी चलती है। सबका अपना कैरियर है। सबकी अपनी खासियत और महत्व है, जिसके बिना यह समाज अधूरा है।
कैरियर का इतना वृहत क्षेत्र रहने के बावजूद हर साल दसवीं और बारहवीं कक्षा के कुछ बच्चे जिंदगी से हार जाते हैं, क्योंकि वे अच्छे नंबर से पास नहीं हुए या वे अपने अभिभावक की उम्मीदों पर खड़े नहीं उतरे। आखिर इन सबमें गलती किसकी है, उस झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा की जिसका बच्चों से कोई लेना-देना नहीं है, या बच्चों के माता-पिता की जो अपने बच्चों की क्षमता नहीं समझते या फिर उनके दिल तक पहुंचने की कोशिश नहीं करते?
पुनश्चः हर बच्चा खास होता है। उसी मिट्टी की तरह जिसे कुम्हार ढाल कर कभी दिये बनाता है, तो कभी घड़ा। जरूरत दोनों की है। अभिभावक एक परीक्षा के परिणाम पर अपने बच्चे की योग्यता तय करने के बदले उसकी प्रतिभा को निखारने में अपनी महती भूमिका निभाएं तो प्रतिष्ठा स्वयं अपनी जगह बना लेगी।