सच ही तो कहा उसने
तुम प्यार करना नहीं जानते।
भला ऐसे भी कोई प्यार
करता है क्या ?
कि नाराज होने का
अधिकार भी न रखे।
कहीं ऐसे भी प्यार
होता है क्या
कि कोई लाख छुड़ाये
और तुम हाथ थामे खड़े रहो —
ऐसे प्यार थोड़े होता है
कि उसने सोचा भी नहीं
और तुम दौड़े चले आये — ।
और ये जो तुम इस नाम
की माला जपते हो ना —
कोफ़्त होती है इस से —
और हाँ , जिसे जिन्दगी
में आना ही नहीं —
उसे जिन्दगी बनाये रहना।
अरे पागल ये प्यार नहीं —
पागलपन है —–
और फिर उसकी
वही निर्दोष सी खिलखिलाती हंसी —
[ जिस पर हमेशा मुझे प्यार आता है —]
और मैं बेबस ये भी
न कह सका
कि सच ही तो कहा उसने —
मैं प्यार करना नहीं जानता,