सकारात्मक ही क्यों सोचें ?

 

हमेशा इस बात का यकीन रखिए कि जो आने वाला है वो बीते कल से बेहतरीन होगा।

अक्सर मुझसे मेरे लोग यह सवाल पूछते हैं कि , हमें बचपन से हमारे अभिभावकों द्वारा यह बताया जाता है कि हमेशा सकारात्मक सोचो लेकिन हमें सकारात्मक ही क्यों सोचना चाहिए आखिरी सकारात्मक सोच की क्या उपलब्धता और आवश्यकता है ?

इस प्रश्न के उत्तर को जानने से पहले हमें विचार की शक्ति – सामर्थ्य को समझने की आवश्यकता है। यह विचारों की अभूतपूर्व क्षमताओं का ही नतीजा है कि आज मनुष्य ना सिर्फ उन्नत जीवन जी रहा है बल्कि जीवन से जुड़े रहस्यों की भी तलाश कर रहा है। यह विचारों का ही सामर्थ्य है कि अपने आरंभिक काल में जानवरों की तरह चलने वाला आदिमानव आज जमीन , आसमान और सागर के साथ अंतरिक्ष की भी यात्रा करने योग्य हो चुका है।

विचार कर्म की आधारशिला है , हम जैसा सोचते हैं हमारे कर्म भी उसी प्रकार होने लगते हैं । उदाहरण के लिए हम किसी वस्तु या व्यक्ति हो तब तक नहीं डरते जब तक हमारे मन में उसके प्रति डर का भाव या विचार जन्म नहीं लेता।

सरल शब्दों में कहने का अर्थ यह है कि हमारे विचार जैसे होते हैं वैसा ही हमारा व्यक्तित्व भी हो जाता है इसीलिए हमें हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए क्योंकि सकारात्मकता सूर्य की किरणों की भांति सत्य का सानिध्य लिए हुए जीवन को सवांरने का कार्य करती है। यहां समझने वाली बात यह है कि सकारात्मकता न सिर्फ आपका जीवन सवारने का कार्य करती है बल्कि आपके आस- पास रहने वाले सभी संबंधियों को एक सार्थक सोच के लिए प्रेरित करती है।

वहीं दूसरी तरफ़ यदि हम नकारात्मक सोच को देखें तो हमें दिखेगा कि यह अपने प्रतिफल में आपको सिर्फ और सिर्फ अंधेर जीवन दे सकती है। आपकी एकल नकारात्मक सोच का प्रभाव ना सिर्फ आप पर पड़ेगा बल्कि आपके साथ आपके संबंधियों और समाज को भी आपकी नकारात्मक सोच का परिणाम भुगतना पड़ेगा।

निश्चित रूप से एक उत्कृष्ट एवं उत्साह पूर्ण जीवन की कल्पना सिर्फ और सिर्फ सकारात्मक सोच का सहारा लेकर ही की जा सकती है। इसीलिए हमें सकारात्मक सोच की महत्वता को समझना होगा।

यह भारतीय चिंतन परम्परा के स्तम्भ और आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी के सकारात्मक विचारों का ही परिणाम है कि आज सृष्टि को एक आडंबर विहीन और आदर्श धर्म प्राप्त है।

यह भारतीय स्वंतत्रता संग्राम के अमर गय सेनानियों की सकारात्मक सोच का ही नतीजा है कि आज भारत गुलामियों की बेड़ियों को तोड़कर समूचे संसार की नज़र से नज़र मिलाकर विश्व कल्याण हेतु प्रयास कर रहा है।

वहीं बात अगर नकारात्मक सोच से जन्म ले रही उपज की करें तो यह कुछ मनुष्यों की नकारात्मक सोच का ही नतीजा है कि आज विश्व आंतकवाद जैसी बड़ी चुनौती से जूझ रहा है।

यह मनुष्य की नकारात्मक सोच का ही नतीजा है कि आज विश्व के कई देशों के नागरिक भुखमरी की समस्या का सामना कर रहे हैं और उस देश का शीर्ष नेतृत्व हथियारों की खरीदी को अधिक महत्व दे रहा है।

यह मनुष्य की नकारात्मक सोच का ही नतीजा है कि समाज आज विभिन्न प्रकार के जघन्य अपराधों का सामना कर रहा है।
यहीं कारण है कि हमारे अभिभावकों और हमारे शुभचिंतको द्वारा हमसे सकारात्मक सोच रखने के लिए कहा जाता है ताकि हमारी सोच से हमारा और समाज का समुचित विकास हो सके।

यह प्रसंग लेखक राजिंदर चोपड़ा की पुस्तक उत्साह से लिया गया है।