साहित्यिक व्यंग्य ; क्लास बी अधिकारी

सिर बुद्धिमान है।
पैर बलवान है।

और पापी पेट बेईमान है।
सारी विपदायें

पेट पर आती हैं।
रोगों के जड़ होने की बदनामी

इसी को मिल जाती है।
क्योंकि वह बीच में है।

जड़ पूजित है।

फूल सुरभित है।

टहनी को कोई नहीं

पानी पिलाता है।
देवों के सिर पे इसे

चढ़ाया नहीं जाता है।
क्योंकि वह मध्य में है।

सुनिए , इसी तरह
सभी कार्यालय में

 ,ए और सी , के बीच का
एक अधिकारी होता है

जो क्लास बी,, कहलाता है
[ मैं भी वहीं हूँ ]

क्लास ए उसे आँखें दिखा जाता है।
क्लास सी बुलाए नहीं आता है।

क्लास सी कहता है ,
यह ए , का चमचा है।

क्लास ए कहता है
यह सी में ही जमता है।

क्लास ए कहता है
ये टेक्टलेस है

क्लास सी कहता है
यह , टीथलेस , है

दोनों के बीच
सैंडविच बना

यह अभागा प्राणी
कार्यरत रहता है।

क्लास  ,ए  ,अपने को मस्तिष्क बताता है।
बल बाले काम का श्रेय

क्लास सी , ले जाता है।
पर सारी गलतियों

का अपयश
यही जीव पाता है।

ऊपर जलद का गर्जन
इसे कंपकपाता है।

नीचे भूकम्प के झटके
इसे जोर से हिलाता है।

पर यह बीतरागी पुरुष
दोनों की मार को

अक्सर झेल जाता है।
पर पता किसे है कि

सिर , होगा बुद्धिहीन ,
पैर होंगे बलहीन ,

यदि यह मध्य का अधिकारी
पेट , काम करना छोड़कर

विश्राम करने बैठ जाय।
बुद्धि और बल

दोनों की खातिर
चाहिए खुराक।

और उसकी आपूर्ति
करता है पेट।
केवल पेट।

जड़ और फूल को
सयुंक्त करने वाला

टहनी रूप बी क्लास
कभी कभार टूट के

गिर भी जाता है
पर अक्सर हवा के

तेज झकोरों में
गजराज की तरह
मस्त हो

अपनी सूँढ़ हिलाता है।
भूमि और आकाश दोनों का
स्वागत कर जाता है।

उपरोक्त साहित्यिक व्यंग्य स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है

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