साहित्यिक व्यंग्य ; प्रश्नोतर

  एक बार भारत की धरती के
सभी जानवरों ने

किए कुछ विचार।
एकाएक पहुँच गए

प्रभु के दरबार।
देवी देवताओं को करके प्रणाम

कहा कि, हे प्रभु।
आपलोग हम सभी में से

किसी न किसी को
बनाए हुए हैं

अपनी सवारी
पर मानव रुपी जानवर को

छोड़ दिया है क्यों ?
ये तो पक्षपात है

प्रभु के दरबार में
ऐसा अन्याय क्यों ?

कारण बताइए।
हमें समझाइए।

प्रधान देवता मन्द मुस्कुराया
शांत रहो कहकर

कुछ ऐसे समझाया।
यहाँ नहीं होता पक्षपात

अन्याय की न होती कोई बात।
उनको सवारी हम

बनाते जरूर ।
अगर वो न रहते

अपनी व्यवस्था के
नशे में चूर।

उनकी व्यवस्था का
नाम प्रजातंत्र है

और मनुष्यों के बीच से
मनुष्यों के द्वारा ही

मनुष्यों की पीठ पर
सवारी करने हेतु

चुने गऐ प्रतिनिधियों को
संसद व विधान सभाओं में

भेजा गया है।
जनता को नकेल पहनाकर

उसकी पीठ पर आसन जमाकर
प्रतिनिधि जिधर चाहे

उधर मोड़ देता है।
बीच चौराहे पर

उन्हें छोड़ देता है।
यदि यह व्यवस्था हो , तुम्हें स्वीकार।

तो तुम इसी वक्त ही
हमारी सवारी से

कर दो इनकार।
देवमुख से सुनकर यह

सभी जानवरों ने
निवेदन किया हाथ जोड़

क्षमा करें नाथ।
चाहिए हमें नहीं ऐसी व्यवस्था।

हमारे लिए होगी यह मृत्यु की अवस्था।
आप तो हम पर भगवन

आसन जमाते हैं।
पर हमारी नाक में

नकेल न पहनाते हैं।
चढ़ने से पूर्व आप पेट भर खिलाते हैं।

और बीमारी के वक्त
दवा तो पिलाते हैं।

उपरोक्त साहित्यिक व्यंग्य स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है ।

 

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