कविता ; तीन उपचार

 

कल रात मुझे
एक मच्छर ने काट लिया

सुबह उठते ही
जहर को मिटाने

मैंने खाया कुनैन।
चालीस साल से जातिवाद –

काट रहा है।
जेब में उसकी दवा के लिए चलता हूँ
और फैमिली प्लानिंग के एजेंटों की तरह

उस दवा का
जनता जनार्दन में

गुणगान करता हूँ
परंतु स्वयं खाने से

परहेज रखता हूँ।
कल रात कुछ खटमलों ने

चढ़ाई करके मेरे
चूस लिए खून।

सुबह उठते ही
खौलता जल डालकर

चारपाई को मैंने
खटमल परिवार से

कर दिया सून। —-
आजादी के बाद से

भ्रष्टाचार रात दिन
चूस रहा खून

और मैं हूँ कि हर रोज
कसमें खाता हूँ।

डेकची उठाता हूँ।
स्टोव जलाता हूँ।
पानी खौलता हूँ।

पर चूल्हे पर छोड़ उसे
दफ्तर चला जाता हूँ।
कल रात मुझे

अपने घर की दीवार में
सदियों से बिल बनाए

साँप ने मुँह को फाड़
छोड़ा फुफकार।

आदमी नहीं था वह
हमले से पूर्व

एलार्म बजाया
मैंने भी फुरती से

साहस दिखाया।
पड़ोसियों को बुलाया।

साँप को मरवाया।
अभी कुछ वर्षो से

पृथकतावाद का उग्र सर्प
बिना एलार्म दिए

बिना फुफकार किए
अपने राष्ट को

डसे जा रहा है।
अपने सख्त पाश में

कसे जा रहा है।
और मैं नेशनलिस्ट हूँ

इसलिए अपने नेशन से दूर
दूसरे राष्ट में

उग्रवादियों को चुपके
बसाता हूँ।

शिक्षा दिलाता हूँ।
रोटी खिलाता हूँ।

इन एन्टी नेशनल को
नेशनल के लेवल से

ऊंचा उठाता हूँ।
इन्टरनेशनल बनाता हूँ।

उपरोक्त साहित्यिक रचनाएँ स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित इन्द्रधनुष पुस्तक से ली गई है ।

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