कह रहे हैं वो गगनचुंबी इमारत है मेरी
हैं बड़े नादाँ गगन को कौन नापा आज तक ?
दर्द जब जब भी जिगर को चीर तड़पाता रहा
कौन उसकी मार को दुनियाँ में मापा आज तक ?
जिन्दगी भर जिन्दगी किसको नहीं प्यारी लगी
मौत के डर से नहीं है कौन काँपा आज तक ?
प्यार की आँखों से देखा एक ने दूजे को जब
नाम उसका कौन जो दिल में न छापा आज तक ?
मूक आमंत्रण जमाने ने – सुना कब हुशन का ?
हाँ। उसे तो इश्क ने साबिक से भाँपा आज तक।
पक बने बर्तन मगर हम भूल उसको ही गए
गूँथ मिट्टी चाक पर जिसने है थापा आज तक।
छू न पाया शर्म हम आला शुरू से ही रहे
देखिए कायम है चमड़ी का मुटापा आज तक।
क्या कहेंगे लोग दो , ये सोचकर बचपन से हम
ढो रहे हैं इस जवानी में बुढ़ापा आज तक
उपरोक्त गजल स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है ।
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