गजल ; कौन नापा आज तक

 

कह रहे हैं वो गगनचुंबी इमारत है मेरी
हैं बड़े नादाँ गगन को कौन नापा आज तक ?

दर्द जब जब भी जिगर को चीर तड़पाता रहा
कौन उसकी मार को दुनियाँ में मापा आज तक ?

जिन्दगी भर जिन्दगी किसको नहीं प्यारी लगी
मौत के डर से नहीं है कौन काँपा आज तक ?

प्यार की आँखों से देखा एक ने दूजे को जब
नाम उसका कौन जो दिल में न छापा आज तक ?

मूक आमंत्रण जमाने ने – सुना कब हुशन का ?
हाँ। उसे तो इश्क ने साबिक से भाँपा आज तक।

पक बने बर्तन मगर हम भूल उसको ही गए
गूँथ मिट्टी चाक पर जिसने है थापा आज तक।

छू न पाया शर्म हम आला शुरू से ही रहे
देखिए कायम है चमड़ी का मुटापा आज तक।

क्या कहेंगे लोग दो , ये सोचकर बचपन से हम
ढो रहे हैं इस जवानी में बुढ़ापा आज तक

 

उपरोक्त गजल स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है ।

 

https://youtube.com/@vikalpmimansa

https://www.facebook.com/share/1BrB1YsqqF/