अब तो कॉम्पीटिशन कोई ऐसा चलाया जाए ,
जिसमें प्रतियोगी को प्रतियोगी बनाया जाए।
जिसकी मेहनत से महक जाए भारत का
हर घर , नौकरी एस कदर दिलायी जाए।
आग निकलती है ह्र्दय से जब समंदर में ,
हम नहाकर भी तृप्त न हो पाए।
ऐसी भावनाओं को समझने के लिये साहब ,
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए।
प्रतियोगी के दुख – दर्द का तुम पर कुछ
असर हो जाए ,
मैं रहूँ भूखा तो तुमसे भी न खाया जाए।
बस पा लूँ ज़िन्दगी में तुम्हें प्रसिद्धि मेरी हो जाए ,
मरने के बाद वो हमें याद रखे कि मौत भी
जिंदगी बन जाए।
उपयुक्त पक्तियां अनीता प्रजापति द्वारा लिखी गई है।
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