कविता ; तलाश

 

व्यक्ति जब व्यक्ति से
कटता है

फिर न जाने क्यों
मेरे सीने में

दर्द होने लगता है।
व्यक्ति जब व्यक्ति से

परन्तु जब सटता है
तो बिना मुआवजा लिए

बिल्कुल नहीं हटता है।
यदि तत्काल मिला नहीं

तो भविष्य में मिलने की
आस जरूर रखता है। —

मैं पागल हूँ
मुआवजा हीन प्रेम की

असफल तलाश में
घूमता – घूमता

जीवन के अपराह्नणकाल में
पहुँच चुका हूँ।

देह की थकान मुझे
धरा पर लिटाती है

पर एक आवाज मुझे
बार बार

संध्या तक
प्रतीक्षारत रहने को

कह कह जाती है।
नींद से जगाती है।

उपरोक्त व्यंग स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।

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