बच्चे की कमी में भरपूर साथ दीजिये

सारिका झा

स्त्री सबसे मजबूत एक मां की भूमिका में होती है, क्योंकि वह एक निर्मात्री होती है।एक बच्चे को सशक्त बनाने की उसकी यात्रा जन्म के बाद से शुरू होकर तब तक चलती रहती है, जब तक वह सफलता के पायदान नहीं चढ लेता है। हालांकि, एक मां की चुनौती और बढ़ जाती है, जब बच्चा शारीरिक अक्षमता के साथ जन्म लेता है। उसे सफल, सक्षम और सम्मानित जिंदगीदिलाने के लिये मां की कठिन मेहनत कई बार समाज में भी बड़ा उदाहरण पेश करती है।

संपादकीय में इस बार एक मां की मेहनत और बच्चे की सफलता की बात होगी जो दूसरों के लिये प्रेरणास्रोत है। दरअसल, हाल ही में वर्ष 2024 की यूपीएससी परीक्षा पास करने वाले अभ्यर्थी मयंक भारद्वाज और उनकी मां प्रतिमा शर्मा से जिंदगी की ओर कार्यक्रम में मेरी बात हुई, जिसने मुझे काफी प्रभावित किया।

मयंक एक बेहद शालीन, विवेकी और शिक्षा को अपना मार्गदर्शक बनाने वाले व्यक्ति हैं, जिन्हें मल्टी डिसएबिली है।पिता और बड़े भाई भारतीय वायुसेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, तो वहीं मल्टी डिसएबिलिटी होने के कारण मयंक भारद्वाज की मां उनका सहारा बनी और अपने सपने तक उन्हें पहचाने में बड़ी भूमिका निभाई।

दरअसल, प्रतिमा शर्मा ने जब दूसरे बच्चे को जन्म दिया तब उन्हें पता चला कि बच्चा दिव्यांग है। यह उनके लिये किसी सदमें से कम नहीं था। जैसा कि वह बताती हैं, काफी समय तक वह अवसाद में रहीं। रिश्तेदारों ने बच्चे को किसी अनाथाश्रम में छोड़ने की सलाह दी तो मां ने उस बच्चे को एक अच्छी परवरिश देने के साथ अपने पैरों पर खड़ा करने के लिये एक मजबूत फैसला लिया गया।

प्रतिमा शर्मा ने बच्चे की पढ़ाई के लिये ब्रेल लिपि सीखी, और उसे स्पेशल स्कूल से घर तक ले जाने में एक साये की तरह लगी रही। उसे हर समय आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करना और हतोत्साहित होने पर उसका उत्साह बढ़ाना, एक बच्चे के लिये मां पूर्ण रूप से समर्पित रही। प्रतिमा शर्मा पूरी तरीके से अपने जन्मांध बेटे के भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिये लगातार प्रयास कर रही थीं, कि एक दिन उन्होंने एक अखबार में एक ऐसे बच्चे की सफलता की कहानी पढ़ी जो उनके बच्चे की स्थिति से मिलती जुलती थी।

एक दिव्यांग ने यूपीएससी की परीक्षा पास की थी, और वहीं से प्रतिमा ने अपने बच्चे मयंक को उसी परीक्षा में पास कराने के लिये प्रयत्न करने शुरू कर दिये। प्रतिमा शर्मा के द्वारा बेटे के लिये देखे गये सपने को साकार करने के लिये मयंक भारद्वाज ने भी बहुत लगन के साथ तैयारी की। इसी का परिणाम हुआ कि आखिरकार मयंक भारद्वाज को यूपीएससी की कठिन परीक्षा में सफलता मिल ही गई, जो एक मां ने अपने बच्चे के लिये देखा था।

मयंक के पास होने की खुशी उनकी मां की आंखों में साफतौर से देखी जा सकती है। जिंदगी की ओर में उनकी ही परिस्थिति से गुजरने वाली दूसरी मांओं को संदेश देते हुए प्रतिमा शर्मा कहती हैं, कि अगर आपका बच्चा दिव्यांग है, या उसमें कोई कमी है, तो आप उसको प्यार के साथ भरपूर साथ दीजिये। वह सामान्य बच्चों से बेहतर करेगा।

मयंक भारद्वाज की बात करें तो उनके अनुसार देखने सुनने में अक्षमता के कारण जीवन में बहुत संघर्षों का सामना करना पड़ा। डीएवी, डीपीएस में स्कूल की शिक्षा के बाद हिंदु कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातक की पढाई की। इसी दौरान सिविल सेवा में जाने के लिये तीन बार यूपीएससी की परीक्षा दी। अंत में इस वर्ष सफलता प्राप्त हो गई। अपने दिव्यांग होने पर उन्होंने कहा कि कभी-कभी समस्या होती है, मगर मजबूत इच्छाशक्ति से इसे दूर किया जा सकता है।

यूपीएससी एवं अन्य परीक्षा में सफलता नहीं प्राप्त करने वालों को अपना संदेश देते हुए मयंक कहते हैं, कि सफर यहां खत्म नहीं होता, आप दोबारा कोशिश कर सकते हैं। यूपीएसी अगर नहीं भी होता है, तो कई अच्छे करियर हैं जहां प्रयास करके भविष्य बनाया जा सकता है।

अगर आप कोई कैरियर चुनते हैं तो जरूरी है कि आप उस पर केन्द्रित होकर पढ़ाई करें। अगर किसी कारण आप उस क्षेत्र में नहीं जा पाते हैं तो अपने ज्ञान को दूसरे क्षेत्र में उपयोगी बनायें। कोई भी ज्ञान कभी बेकार नहीं होता। इसके साथ ही अपनी सफलता का सारा श्रेय उन्होंने अपने परिवार और विशेषरूप से अपनी मां को दिया जिन्होंने हर स्थिति में उनकी ताकत बनकर साथ दिया।