अब शब्द हमारे दिल को बहलाना भूल गये ,
अब यादों के वो पंछी पास आना भूल गये।
तब से ही ये आंखें अपनी सोना छोड़ गई ,
जब से वो सपनों में आना जाना भूल गये।
गुजरे तो थे फिर से वो नजरों के आगे से ,
फर्क यही था अब आवाज लगाना भूल गये।
जब से उनसे हमने , ये दर्द नया पाया है ,
तब से किस्मत से भी , हम कुछ पाना भूल गये।
उनकी तो आदत सी है भूलते जाने की,
जाते – जाते अश्कों का वो खजाना भूल गये।
संघर्ष नजर तो आयी थीं फिर से वो नजरें ,
इक पल तो लगा के जैसे पहचाना , भूल गये।