सोरायसिस है बड़ी समस्या

मीमांसा डेस्क।

त्वचा रोग से संबंधित सोरायसिस के मामले पिछले 10 से 15 सालों में बहुत बढ़ते जा रहे हैं। इस संबंध में विशेषज्ञ आयुर्वेद डॉक्टर तरुण गुप्ता ने सोरायसिस होने का कारण और निदान पर कई महत्वपूर्ण बातें कही है , जिन्हें निम्नलिखित रूप में उल्लेखित किया गया है। सोरायसिस एक तरह का स्किन डिसऑर्डर है , जिसके बारे में लोगों को बहुत सी  भ्रांतियां हैं। लोग ये सोचते हैं कि सोरायसिस एक – दूसरे से फैलता है । जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है।

सोरायसिस ऐसी बीमारी नहीं है कि आपके छूने से या तौलिये के इस्तेमाल से यह किसी में फैलता है। न ही यह इन्फ़ेक्टिव डिसऑर्डर है।    यानि किसी इंफ़ेक्शन के कारण हमारे शरीर में नहीं आता ,बल्कि हमारा शरीर खुद ही इसे तैयार करता है।

इसके होने के पीछे के कारण की बात करें तो हमारे खाने- पीने का तरीका आजकल बहुत बदल रहा है। हमारे प्रतिदिन की जीवनशैली जिसमें, सोना जगना ,  और  खाना- पीना शामिल है।

आज के समय में देखा जाए तो लोगों के पास खाना खाने के लिए अलग से वक्त नहीं है। पहले जब हम खाना खाते थे, तब कहते थे कि खाना खाते समय उसमें मन लगाओ। अब खाना  खाते समय लोगों के मोबाइल फोन, टीवी, ऑन होते हैं, और कई बार फोन पर उसी समय बातें भी करते हैं।

अक्सर ऑफिस जाते समय गाड़ी में बैठकर खाना खा रहे होते हैं। फिर जब हम खाने में मन ही नहीं लगाते हैं , उसे एक  काम की तरह करते हैं । आयुर्वेद में साफतौर से कहा गया है , कि जब आप खाना खा रहे हैं, तो उस खाने के स्वाद को महसूस कीजिये। उसे मन से ग्रहण करिये। इससे आपकी पाचक शक्ति बढ़ती है।

खासकर सोरायसिस में खाने की टाइमिंग पर बहुत विशेष ध्यान देना चाहिये । अमूमन यह देखा गया है कि जो लोग बहुत भारी खाना खाते हैं , बहुत तला खाना खाते हैं , या पिज़्ज़ा बर्गर और पनीर का अधिक सेवन करते हैं, उनकी डाइट में अल्कोहल का प्रयोग ज्यादा है ,और खाने का समय सही नहीं है, तो उनमें सोरायसिस होने की बहुत संभावना होती है।

दरअसल , व्यक्ति की त्वचा एक निश्चित समयानुसार बिगड़ती बनती रहती है। सोरायसिस में यह सेल्स सामान्य की अपेक्षा तेजी से बनने लगते हैं ,जिससे त्वचा की परत मोटी नजर आती है ।

  •  सोरायसिस के लक्षण

सोरायसिस के लक्षण की बात करें तो त्वचा में रूखापन आता है ,खुजली होती है और देखने में बहुत अजीब लगता है। पीड़ित को महसूस होने लगता है कि मैं सुंदर नहीं लग रही हूँ , या नहीं लग रहा हूं। इसका एक दूसरा स्वरूप स्कैल्प सोरायसिस है, जो सिर पर होता है । उसे शुरुआत में लोग अनजाने में डैंड्रफ या रूसी समझ लेते हैं।

सोरायसिस कई प्रकार के होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार कुछ सोरायसिस में कफ वृद्धि ज्यादा होती है। जो सोरायसिस कफ और वात के कारण होते हैं , उसे आप ठीक कर सकते हैं।

कुछ ऐसे सोरायसिस हैं , जिन्हें ठीक करने के लिए लगातार प्रयास करना पड़ता है । कई ऐसे सोरायसिस पीड़ित है , जिन्हें पिछले 10 से 15 सालों के बीच किसी तरह के लक्षण नहीं दिखे हैं , क्योंकि उन्होंने अपनी जीवन शैली और खान-पान पर संयम रखा। सोरायसिस में सबसे बड़ा फैक्टर पीड़ित स्वयं ही है ,जो अपनी देखभाल और परवाह सही तरीके से करे तो जिंदगी भर ठीक रह सकता है।

अगर किसी को सोरायसिस हो गया है तो बहुत कम संभावना है कि वह उसे सिर्फ डाइट से ठीक लेगा। किसी में मोटापा है ,और उसे सोरायसिस भी है जो कफ वृद्धि के कारण हुआ तो जब वह अपने खाने में बदलाव करके अपना वजन कम करे तो भी उसमें सोरायसिस के लक्षण कम होने लगेंगे।

सोरायसिस की सबसे बड़ी समस्या है कि यह चिरकालीन होता है , जो लंबे समय तक रहता है। व्यक्ति इसे नजरअंदाज करता है,जिससे यह धीरे-धीरे फैलना शुरू हो जाता है। इसमें कुछ पीड़ित को खुजली होती है तो वहीं कुछ को पित्त वृद्धि होने से जलन होती है । धूप में या किचन में यह जलन और परेशानी उत्पन्न करती है ।

आयुर्वेद के अनुसार, हर बार लक्षण बदलने पर इसका उपचार बदल जाएगा । इसलिये अगर आपको सोरायसिस के लक्षण हैं , तो आयुर्वेदिक डॉक्टर को दिखाकर उसका निदान शुरू कीजिये ।

 

  •   सोरायसिस से बचाव

सामान्यतया अगर किसी को चार-पांच साल तक सोरायसिस है तो उसके इलाज में भी लगभग 1 साल का समय लग सकता है। हालांकि इलाज शुरू होने के 4 से 6 हफ्ते बाद तक बदलाव होना शुरू हो जाता है।

बीमारी पुरानी होने और प्रतिरोधी क्षमता पर असर करने के कारण इलाज थोड़ा लंबा होता है। इसके साथ ही दोबारा इसका असर नहीं हो इसके लिए पंचकर्म विधि भी अपनाई जाती है , जिससे शरीर का शुद्धिकरण होता है ।

पंचकर्म में वमन और विरेचन कराया जाता है, जिसके पास सोरायसिस पीड़ित को लगभग एक वर्ष तक दवा दी जाती है और बाद में दवाइयां भी बंद कर दी जाती है।

इसमें दो-तीन सालों तक हर साल पंचकर्म कराने की सलाह दी जाती है , जिससे सोरायसिस के पुनः उत्पन्न होने की संभावना लगभग समाप्त हो जाए ।

सोरायसिस मौसम बदलने पर भी प्रभावित करता है। इसलिये पीड़ित को इस समय पर भी अपना खास ध्यान रखना चाहिये। खासकर उमस के मौसम और सर्दी के मौसम में इसकी वृद्धि देखी जा सकती है। सर्दी के मौसम में कफ के बढ़ने से और गर्मी के मौसम में पित्त के बढ़ने से सोरायसिस के लक्षण बढ़ने की काफी संभावना होती है।

यह ध्यान रखने वाली बात है कि पीड़ित को किस प्रकार का सोरायसिस है , जिसे समझकर ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। सोरायसिस खान-पान में अनियमितता के साथ तनाव की वजह से भी बढ़ता है।

तनाव को कम करने के लिए आयुर्वेद में कुछ  दवाई दी जा सकती हैं। इसके अपनी बातों को दूसरों से कहकर सहज होना, संगीत सुनना और प्राणायाम करने की सलाह भी दी जाती है ।

सोरायसिस पीड़ित को अर्थराईटिस होने की संभावना रहती है , जिसे सोरायटिक ऑर्थराइटिस करते हैं। लेकिन यह भी सोरायसिस पीड़ित में नहीं देखा जाता है। ऐसा देखा जाता है कि कोई अगर आर्थराइटिस से पीड़ित है और उसे सोरायसिस हो गया है ,उसका इलाज सोरायटिक और ऑर्थराइटिस की तरह किया जाता है।

आयुर्वेद में इसका इलाज संभव है । यह वंशानुगत रोग भी है । अगर माता-पिता या किसी रक्तसंबंधी को यह रोग है तो इसके होने की संभावना होती है। ऐसी स्थिति में इलाज की अवधि लंबी होती है ।

त्वचा रोग कई तरह की हो सकती है। किसी भी रोग को नजरअंदाज न करें। हमेशा यह ध्यान रखें कि आपकी दादी , नानी , जो खाने की चीजें बताती थी , उनका सेवन करना चाहिये। आपको फिर से उनका अनुसरण करना ही पडेगा।

अधिकांश रूप से कफच सोरायसिस के मामले देखे गए हैं , जिनमें बहुत ठंडा पानी, ठंडी चीजें , दही का अधिक सेवन , खट्टी चीजों का सेवन, खोये , पनीर व तले हुई चीजों का अधिक सेवन करना आदि वर्जित हैं। वही भूख नहीं लगने पर भी खाना खाने से सोरायसिस में वृद्धि देखी जाती है ।

सोरायसिस जानलेवा रोग नहीं है, लेकिन इसके लक्षण [खुजली जलन] ऐसे हैं जो पीड़ित की रोजमर्रा की जिंदगी को बुरी तरीके से प्रभावित कर सकता है । यह एक आंतरिक रोग है , जिसे इलाज और अच्छी जीवन शैली के साथ ठीक किया जा सकता है।