कैसे ?

 

शहर बड़ा है घूम लो दिन भर
सवाल पूछो नहीं रात बितेगी कैसे ?

लिए है जायका नमकीन लहू का मुँह में
नमक से ये बताओ प्यास बुझेगी कैसे ?

क्षुधा की आँख रोटियों से हट नहीं पाती
बहारे – बाग जामने में दिखेगी कैसे ?

हर एक शख़्स की चाहत है एक मुल्क बनें 
बनेगी मेड़ कहाँ भूमि बटेगी कैसे ?

शहर तमाम भर गए हैं बस फकीरों से
है चीज ही नहीं तो माँग घटेगी कैसे ?

खुदा को  कत्ल  करके वार किए इन्साँ पर
तो फिर मरे हुए से प्रीत बढ़ेगी कैसे ?

सभी दरख्त  है दुरुस्त बेल के खूँ से
दिखाई देती है पीली ये चढ़ेगी कैसे ?

बहुत  शिफारिसों  के बाद बना हूँ उँचा 
ये आबरू मेरी , बिन इसके बनेगी कैसे ?

हटाने गंदगी रुमाल नाक पर न धरुँ
तो मेरी नाक मुहल्ले में बचेगी कैसे ?

शहर की रात दिन से लग रही है क्यों अच्छी
चमक – दमक में रूह वैसे डूबेगी कैसे ?

उपयुक्त पक्तियां इन्द्रधनुष पुस्तक बी एन झा द्वारा द्वारा लिखी गई हैं।