कलयुगी राजनेता
कल का भविष्य बताते हैं।
भोली – भाली जनता को
कोई दूजा अक्श दिखाते हैं।
आकांक्षाओं के हजारों
वादे करते
मिट्टी का पुल सजाते हैं।
सामने अपनी जनता को
खुद ईश्वर सदृश्य दिखाते हैं ।
और कहते हैं ,
मैं ही हूँ आपका युग
पर नहीं समझ उनको ,
कि ये तो है कलयुग
नादान हैं वो जो करते नादानी
जनता ने भी हरदम
उनकी कहाँ है मानी।
विकास की बात कहते
पर करते नहीं जानी।
जनता उनकी करती
नहीं बखानी
पर जब वक्त उसका आता है —
घर – घर वह सबको बुलाता है ।
सुनता तो है वह
फिर भी सबकी
पर अंदर मन का
बटन दबाता है।
वह कल का भोला आम नहीं
वह आज का जागरूक मतदाता है।
उपयुक्त पक्तियां मनीष कुमार चाईबासा द्वारा लिखी गई है।