शिवलिंग क्या है ?

शिवलिंग क्या है ?

वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रहमाण्ड का अक्स ही लिंग हैं। इसलिये इसका आदि और अन्त भी देवताओं तक के लिये अज्ञात हैं। सौरमंडल के ग्रहों के घूमने की कक्षा ही शिव तन पर लिपटे सांप हैं। मुण्डकोपनिषद के कथानुसार सूर्य , चांद , और अग्नि ही आपके तीन नेत्र है। बादलों के झुरमुट जटाएं ,  आकाश जल ही सिर पर स्थित गंगा और सारा ब्रहमाण्ड ही आपका शरीर है।

शिव कभी गर्मी के आसमान [शून्य] की तरह चांदी की तरह दमकते , कभी सर्दी के आसमान की तरह मटमैलै होने से राख भभूत लिपटे तन वाले है। यानी शिव सीधे – सीधे ब्रहमाण्ड या अनन्त प्रकृति की ही साक्षात मूर्ति है।

मानवीकरण में वायु प्राण , दस दिशाएँ पंचमुखी , महादेव के दस कान ह्र्दय सारा विश्व , सूर्य नाभि या केन्द्र और अमृत यानी जलयुक्त कमण्डल हाथ में रहता हैं। शून्य , आकाश , अनन्त ,ब्रहमाण्ड और निराकर परमपुरूष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है।

स्कन्द पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा गया है।