सपनों की हड़ताल है साहेब
आंखों ने ये मांग रखी है।
जब तक उसको देख ना लेंगे
तब तक हम ना सोयेंगे ।
नींद भी बैरी रिश्वत लेकर
उसके हक में जा बैठी है ।
आंसू भी जिद कर बैठे हैं ।
हम रोयेंगे हम रोयेंगे
यादें तो वैसे भी बैरन
दिल में मेरे , हक में उसके
धड़कन ने भी बिगुल बजाया
दर्द नया अब बोयेंगे
चाहत की कुछ बातें ऐसी
नजरें देखे , दिल घायल हो ।
फिर ज़िद का ये किस्सा हो कि
उनको अब ना खोयेंगे।
उपयुक्त पक्तियां अमित तिवारी द्वारा लिखी गई है।