ज्ञान की हस्ती को पति बनाकर ,
जीवन को जीने लगे।
धरती और आकाश भी ,
फूलों की वर्षा करने लगे।
प्रिय जोड़ा कहीं बिछुड़ न जाये
खूब ज्यादा प्यार करने लगे।
उसकी हर मुस्कुराहट पर हम
अपनी कलाएँ बिखेरने लगे।
तरह – तरह की सखियां भी
झूम – झूमकर गाने लगी।
शय्या छोड़कर शरीर त्यागकर
मंत्रमुग्ध होकर नाचने लगी।
सावन बीता , भादो बीता
बारिश की बौछार कम होने लगी।
दीपक की बाती बनकर
धीरे – धीरे बुझने लगी।
ख्याति नक्षत्र की एक बूंद के लिये
चातक की तरह तरसने लगी।
विरह की एक नई नौकरी
स्वदेश में ही घायल करने लगी।
कवार लग गया , जल घट गया
पपीहा बनकर पीऊ को पुकारने लगी ,
प्रिय तुम कहाँ हो , तुम कहाँ हो
शार्दुल बनकर अब तो मैं गरजने लगी।
उपयुक्त पंक्तियां अनीता प्रजापति के द्वारा लिखी गई है।