मोमबत्ती की तरह

घर आंगन में फुदक – फुदकर
चहकती रही।
शून्य गगन में आजाद पंछी की तरह
उड़ती रही।
उन्मुक्त होकर खुली हवा में सांस
लेती रही।
सुबह की मुझे परवाह नहीं थी , जागकर भी सोती रही।
अभी करती हूँ , कर रही हूँ कर दूंगी बातों को टालती रही।
घर की बगियों में फूलों की तरह महकती रही।
पता था , सब छूटेगा एक दिन, सोचकर रोती रही।
पल भर में परायी हो जाऊंगी यह सोचती रही।
लड़की से बहू बनकर मोमबत्ती की तरह पिघलती
रही
अपने अस्तित्व को पिघला दिया , फिर भी मै
जलती रही।

उपयुक्त पंक्तियां अनीता प्रजापति द्वारा लिखी गई हैं।