क्या अपराध किया जो मैने हर नारी का दर्द जिया है
दोहरे मापदण्ड के चलते शोषण को स्वीकार किया है
कर्त्तव्यों की थाती अक्सर महिलाओं के हक में रहती
पुरुषों की उदण्ड प्रकति को हमने ही अधिकार दिया है।
वो जो भी छुपकर करते हैं , नैतिकता की हद में है वो
हम जो तनिक मार्ग में हंस देते तो हमने व्यभिचार किया है।
लिप्त रहे अपराधों में जो वो खुद को आदर्श बताते
बात सत्य जो हम कह दें तो कहते हैं , प्रतिकार किया है।
नारी ही नारी के दुख को भली – भांति परिचित रहती है।
मैंने भी इस सच्चाई को दुनिया में चरितार्थ किया है।
हर अच्छाई में मण्डित वो हर विरोध में नाम हमारा ,
दोषारोपण उस पर भी , हमने खण्डित हर कार्य किया है।
उपयुक्त पंक्तियां रजनी सैनी सहर की लिखित पुस्तक परिधि से पहचान तक से ली गई है।