मैंने जान लिया है जीवन ,
इन दो चार दिनों में ,
बरसी अंखियां सूखा सावन
इन दो चार दिनों में।
कैसे गिर जाती है ,
हाथों से ये लकीरें ,
कैसे खो जाती है,
धुंध में ये तस्वीरें ,
कैसे मिल जाता है कोई ,
जीवन से भी प्यारा ,
कैसे कुछ पल कर जाते हैं ,
जख्म ये धीरे – धीरे ,
खाली सा मन – सूना आंगन
इन दो चार कदमों में ,
बरसी अंखियां सूखा सावन ,
इन दो चार दिनों में।
क्यूँ आना जाना उसका
सांसो में होता है,
फूल भला मुरझाये क्यों
जब वो चुप होता है,
माना मन माने ना
बिन उसकी हलचल के ,
क्यूँ उसकी हलचल में
दिल पल – पल खोता है ,
मन में – क्रंदन – बासी चन्दन
इन दो चार दिनों में ,
बरसी अंखियां सूखा सावन ,
इन दो चार दिनों में।
उपयुक्त पंक्तियां अमित तिवारी द्वारा लिखी गई हैं।