आप भी हैं कुछ नहीं

आपसे है बेइन्तहाँ मुझको मुहब्बत इसलिए
पीठ पीछे भोंकना खंजर लगा मुझको सही
लिख रहे हैं वो भी जो कहते चले हैं आ रहे
सब धरे रह जायेंगे लिख लिख के क्या होगा बही।
एक ने ना पास बैठाया बड़ा अच्छा हुआ।
क्या मुझे दिखता अनेको पास दिल के फिर कहीं।
टूटता हूँ जब तलक , आता न कोई जोड़ने
सब बिख़र जाने पे आते रीत दुनियाँ की यही।
हैं नहीं सब कुछ मगर पैसा है कुछ इतना ज़रूर
आप संग ये , कुछ नहीं तो आप भी हैं कुछ नहीं।
उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।