तो ये बन जाती सजा है

ठीक है हम मानते हैं इन्तजारी मे मजा है।
हद से जब बढ़ जाय लेकिन तो ये बन जाती सजा है।
दिल को हम झूठी तसल्ली कब तलक देते रहेंगे ।
नाम ओ जाने – जहाँ कब तक तेरा लेते रहेंगे ।
मान सकते हम मगर ये दिल बहुत तुझसे खफ़ा है।
हद से जब बढ़ जाए लेकिन तो ये बन जाती सजा है।
प्यास लगते ही मिले पानी तो अच्छी बात है।
प्यास बढ़ने पर मिले तो और अच्छी बात है।
पर बढ़े इतनी बने ये मौत तो क्या फायदा है।
हद से जब बढ़ जाए लेकिन तो ये बन जाती सजा है।
तुम समझ शायद गई होगी हमारी बात को
देर क्या अब तो हमारे हाथ अपने हाथ दो।
दो नहीं मौका जहाँ कह दें कि हमसे तुम जुदा है।
हद से जब बढ़ जाए लेकिन तो ये बन जाती सजा है।
उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।