भवरे को बेईमान
कहने वालों
शर्म करो।
कलियों से कभी
पूछा है तुमने
कि हे कलियाँ
खुदा ने तुम्हारी जिस्म मे
खुशबू का खज़ाना
भर दिया है।
सहेज कर रखने हेतु।
तुम उसे क्यों नहीं
अपने मे
रख पाती हो ?
बड़े शौक से
उसे क्यों
खुद ही लुटाती हो ?
उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।