सच्ची प्रार्थना

 

हे भगवान।
तुम धन्य हो।
तुमने बार – बार मुझे
विपदाओं से उबारा है।
मेरा भाग्य सवांरा है।
किस विधि तेरा
पूजन करुँ ?
दीन , अनपढ़ अज्ञानी हूँ।
कुछ भी तो
मेरे पास नहीं है।
खाली हाथ हूँ।
और पूजन की कोई विधि
कीर्तन या भजन की कोई पक्ति
बिल्क़ुल नहीं जानता हूँ।
ऐसे मे तुम्हें क्या कहूँ ?
कैसे कहूँ ?
बस दिन रात
आकाश की और
हाथों को उठाकर
तुम्हारी लम्बी आयु की
कामना करता हूँ।
और यही कहता हूँ कि –
हे भगवान जी
भगवान तेरा भला करे।
तेरी सब बला हरे।

उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।