आरोपों प्रत्यारोपों में, जीवन का आधार खो गया।
करे आंकलन क्या कमियों का, नैतिकता का सार खो गया।
जो प्रबुद्ध थे, कल समाज में, अब वो नौसीखिये कहलाते।
दन्दफन्द, पाखण्ड भरे लोगों का अब संसार हो गया।
उल्लासों की स्मृति धुंधली, खुशियों ने भी करवट बदली।
मानवता भी सुस्त हुई अब स्वार्थ से वो व्यवहार हो गया।
राजनीति सत्ता के गलियारों से पहुंची जब चौखट पर
द्वंद हुआ अपनो-अपनो में रिश्तों से हर प्यार खो गया।
हर कोई व्याकुल है, सत्ता सुख के रस्वादन को लेकिन
कर्तव्यों सत्कर्मों का हर अर्थ,, यहां बेकार हो गया।
चाटुकारों की रणनीति ने आंखों पर वो परदे डाले
निष्ठावान हर चेहरे को, कहते वो, बेईमान हो गया।
उपर्युक्त गीत “परिधि से पहचान तक” के गीत संग्रह से लिया गया है, जिसकी लेखिका रजनी सैनी सहर हैं।