अनिका अरोड़ा
कौन कहता है, बचपन बच्चों का खेल है? कभी इम्तेहान तो कभी प्रोजेक्ट, कभी होमवर्क तो कभी क्लासवर्क तो कभी सोशल मीडिया। और इस सबके बीच एक भारी सवाल…तुम क्या बनना चाहते हो ? कौन सी स्ट्रीम, कौन सा प्रोफेशन ? जितने सवाल उससे कहीं ज्यादा जवाब। कोई कहता है साइंस लेना चाहिये, डॉक्टर, इंजीनियर्स की देश को जरूरत है। कोई कहता है, कॉमर्स लेना चाहिये। एमबीए करके विदेश में नौकरी लगेगी। कौई कहता है आर्ट्स लेकर आर्टिस्ट,टीचर, प्रोफेसर बन जाओ। कोई बॉयोटेक्नोलॉजी की तारीफ़ करता है तो कोई साइंस की, कोई एडवोकेट बनने की कहता है तो कोई सीए।
सवाल ये नहीं कि कौन सी पढ़ाई अच्छी है, और कौन सी कम अच्छी। कौन सी आसान है, कौन सी मुश्किल। किसमें एडमिशन मिलेगा, किसमें नहीं।
असली सवाल ये है कि तुम करना क्या चाहते हो ? तुम्हारा सपना क्या है..? तुम्हें खुशी किस काम को करके मिलती है ? दुनियाँ में हर काम का अपना महत्व होता है। लेकिन हर इंसान हर काम को करने के लिये नहीं बना, इसलिये यह जानना बहुत जरूरी है कि तुम्हारा रूझान किस ओर है ? तुम्हारे हुनर क्या हैं ?
16 साल की उम्र में यह तय करना कि 60 साल तक क्या करना है, बहुत मुश्किल है। इसीलिये ये बहुत जरूरी है कि आप जो भी स्ट्रीम चुनें, वो ज्यादा से ज्यादा दिशाओं की ओर आपको लेकर जाए, क्योंकि यह बहुत अहम फ़ैसला है। इसलिये बहुत जरूरी है कि इसे बहुत सूझ-बूझ और चिंतन के बाद लिया जाए।
बड़े-बड़े विद्वान, काउंसलर, एडवाइजर “डिसिजन मेकिंग” को “प्रोसेस”(निर्णय लेने की प्रक्रिया) समझते हैं, और तभी एक व्यवस्थित प्रक्रिया का प्रयोग करने की सलाह भी देते हैं। अपनी स्ट्रीम या कैरियर चुनने से पहले कुछ समय सोचने और समझने में व्यतीत करना जरूरी है। ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करना भी बहुत अहम होता है।
बाहरी जानकारी प्राप्त करने से पहले खुद को समझना जरूरी है। आत्म अध्ययन करना सीखना चाहिये। इससे अपने बारे में बेहतर जानने का मौका मिलता है। स्वोट-SWOT(Strengths, Weaknesses, Opportunities and Threats) एनालिसिस-Analysis एक माध्यम है, जिससे खुदको बेहतर समझने में सहायता मिलती है। इसके बाद अपने रूचि के विषयों की सूचि बनाने से सोच को एक दिशा मिलती है। इस सोच को माध्यम बनाकर कोर्स के बारे में जानकारी प्राप्त करने से कोर्सेज का चयन करना आसान हो जाता है।
जैसे हर जगह पहुँचने का रास्ता अलग होता है, वैसे ही जीवन में हर लक्ष्य को पाने का जरिया भी अलग होता है। आज भारत में एजुकेशन इंडस्ट्री इतनी तरक्की कर चुकी है कि कोर्सेज, प्रोफेशन्स की गिनती करना संभव नहीं है। ऐसे-ऐसे कोर्सेज हैं जिनके बारे में कभी सुना नहीं गया था, जैसे- स्पोर्ट्स मैनेजमेंट, हॉस्पीटल मैनेजमेंट, इंटीग्रेटेड प्रोग्राम्स जिनके साथ 2 स्ट्रीम पढ़ी जा सकती है। ये सब सुविधाएँ बच्चों को अपने सपने को सच करने में मदद करती हैं।
कहते हैं, काम वो करो जिसमें खुशी मिले, और खुशी की परिभाषा हर मनुष्य की अलग होती है। इसलिये जीवन में सवालों के जवाब बाहर नहीं अपने अंदर ढ़ूँढ़ने चाहिये, क्योंकि केवल आप जानते हैं कि आपकी असली खुशी किसमें है।
माता-पिता फैसले लेने के लिये बच्चे को प्रोत्साहित करें
माता-पिता को बच्चों को खुद फैसला लेने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। उन्हें बच्चों का आत्मबल बढ़ाना चाहिये, ताकि जीवन के छोटे-बड़े फ़ैसले लेने में वो कभी असमर्थ महसूस न करें। इस आधार पर यह बहुत जरूरी है कि बच्चों को अलग-अलग विषयों की उचित जानकारी प्राप्त कराई जाए। उनके बाद नौकरियों में आने वाली कठिनाईयो के बारे में बताया जाए, ताकि वो दूरदर्शिता से फ़ैसला लेना सीखें। उनपर अपने फ़ैसले थोप देने से हम उन्हें अपना भला-बुरा सोचने के लिये कमजोर और असमर्थ बना देते हैं। जिससे उनके आने वाले जीवन में उन्हें निराशा, अफ़सोस और निर्बलता का अहसास होता है। इस कार्णवश आज बच्चों में बढ़ते हुए ब्लड प्रेशर, व्याकुलता, डिप्रेशन(अवसाद), और आत्महत्या जैसी प्रवृति देखी जा रही है।
जब परिजन बच्चों को जीवन के सही मूल्य सिखाकर अपने आप की जिम्मेदारी उठाना सिखाने की जगह उनके जीवन के हर छोटे-बड़े फैसले खुद करने की कोशिश करने लग जाते हैं, तो बच्चों को जीवन से लड़ने की सीख और शक्ति नहीं मिलती। इसी कारणवश वो आत्महत्या, अवसाद एवं बैचैनी जैसी स्थिति में आ जाते हैं। इसके विपरीत जो माता-पिता छोटी उम्र से अपने बच्चों को अपना काम खुद करने का प्रोत्साहन देते हैं, परिस्थितियों से लड़ने की हिम्मत देते हैं, उनके बच्चे आगे चलकर बेहतर जीवन व्यतीत करते हैं। वो किसी पर अपने काम और फैसलों के लिये निर्भर नहीं होते हैं। जिससे निराशा का सामना नहीं करना पड़ता है।
माता-पिता और शिक्षकों को चाहिये कि बच्चों को बजाय डॉक्टर, इंजीनियर बनाने के एक सक्षम इंसान बनाने की कोशिश करें। बेहतर इंसानों से बेहतर समाज बनता है। आजकल बच्चों में जितने भी आत्महत्या की घटनाएँ हो रही हैं, अगर गौर किया जाए तो कहीं न कहीं उनके पीछे समाज का बच्चों पर फैसले थोपने का चलन जिम्मेदार पाया जाता है। यदि हर बच्चे को सही मार्ग दिखाते हुए अपनी दिशा स्वयं चुनने का मौका दिया जाए, उसकी बैशाखी नहीं उसकी शक्ति बना जाए तो बच्चों का बेहतर विकास होगा।
बच्चों से दोस्त बनकर जाने उनके मन की बात
सोशल मीडिया के समय में बच्चों को सही गलत का परिचय कराना बहुत कठिन होता जा रहा है। बच्चों की सोच को प्रभावित करने के इतने ज्यादा माध्यम खुल चुके हैं, कि उनके मन की बात जान पाना एक चुनौती से कम नहीं है। तभी माता-पिता और शिक्षकों को कभी दोस्त बनकर प्यार से तो कभी बड़ा बनकर सख्ती से, तो कभी काउंसलर बनकर खुले दिमाग से सुनना और समझना चाहिये।
बच्चे अक्सर अपने मन की बात बताने से संकोच करते हैं। जिस कारणवश उनके व्यवहार के प्रति सचेत रहना आवश्यक है। अक्सर बुरे और अजीब व्यवहार के पीछे बच्चों की कुछ गहन समस्या पाई जाती है। यदि माता-पिता या शिक्षक केवल ऊपरी सतह से देखकर भ्रमित हो जाएँ तो बच्चों की असली परेशानी का हल नहीं निकल पाता और बाहरी प्रभाव से वह गलत रास्ते की तरफ मुड़ सकते हैं, जो कि उनके लिये कहीं ज्यादा हानिकारक हो सकती है।
तुम क्या बनना चाहते हो, इस प्रश्न की जगह “बेटा अच्छा इंसान बनो” यह प्रोत्साहन बचपन से बच्चों को दिया जाए तो वो बेहतर और ज़िम्मेदार इंसान बनने की ओर बढ़ेंगे, जिसका परिणाम एक बेहतर सुलझा हुआ जीवन होगा, जो हर इसान की असली जरूरत है एक पूर्ण जीवन के अनुभव के लिये।
लेखिका स्टूडेंट काउंसलर हैं एवं लाईफ स्किल्स पर प्रशिक्षण देती हैं।