स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरणाश्रोत रहा बंकिम चन्द्र का वंदे मातरम

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड

भारत का राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम्’ बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय (चटर्जी) की रचना है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रांतिकारियों का प्रेरणाश्रोत बन गया था।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला के साहित्यकारों में बंकिम चन्द्र का अन्यतम स्थान है। बांग्ला साहित्य में जनमानस तक पैठ बनाने वालों में ये पहले साहित्यकार थे जो बांग्ला भाषा के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, लेखक और पत्रकार थे।
बंकिम चन्द्र  का जन्म 26 जून 1838 को बंगाल स्थित कोलकाता के नैहाटी में यादव चन्द्र चट्टोपाध्याय के समृद्ध परिवार में हुआ था। इनकी माता का नाम दुर्गा देवी चट्टोपाध्याय था। 1857 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में बी.ए. की उपाधि लेने वाले यह पहले भारतीय थे।

शिक्षा समाप्ति के तुरंत बाद डिप्टी मजिस्ट्रेट के पद पर इनकी नियुक्ति हो गई। कुछ समय तक यह बंगाल सरकार के सचिव पद पर भी रहे। इन्होंने रायबहादुर और सी.आई.ई. उपाधियाँ पाई। इनकी प्रथम प्रकाशित कृति ‘राजमोहन्स वाइफ’ थी और मार्च 1865 में प्रथम बांग्ला कृति ‘दुर्गेशनंदिनी’ प्रकाशित हुई।

1869 में कानून की डिग्री हासिल करने के बाद 1872 में मासिक पत्रिका ‘बंग दर्शन’ का प्रकाशन किया। इसके साथ ही  1882 में देशभक्ति की भावनाओं से भरा उपन्यास आनंदमठ प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के सन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है।
बंकिम चन्द्र 1891 में सेवानिवृत्त हुए और 8 अप्रैल 1894 को बंगाल के कोलकाता में इनका निधन हो गया। इनके उपन्यासों का भारत के लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद किया गया है। लोकप्रियता के मामले में बंकिम चन्द्र, रवीन्द्र नाथ ठाकुर(टैगोर) से भी आगे हैं।  भारतीय डाक ने 1969 में इनके नाम डाक टिकट जारी किया।
26 जून को  बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 731वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।

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