गीत ; मगर हैं आदमी हम

सिंधु तट के
रेत – कण

तेरा निमंत्रण
हम न भूले हैं।

गुजरते हैं
तुम्हारे पास से हम रोज

लेकिन भय सताता है कि
यदि हम लेट लें

कुछ क्षण यहाँ तो
तुम हमारे पाप का

वह ताप भीषण
सोख लोगे

और हम तापित तुम्हें
करते रहेंगे

क्योंकि तुम हो साधु सागर तट
मगर हैं आदमी हम।

उपरोक्त गीत स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से लिया गया है।

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