द्रोण व एकलव्य

 

 

मेरा ट्रांसफर होते ही
हस्तिनापुर ज्वाइन करने से पूर्व ही

हल्ला मच गया
एकलव्य आ रहा है।

अर्जुन अधीर हुआ।
द्रोण गंभीर हुआ।

मैं हस्तिनापुर आया
डोल गई लोगों की काया।

उन्होंने हाथ भी मिलाया।
पर अंगुलियों को छोड़कर

अंगूठा दबाया।
आधुनिक द्रोण तब

धीरे से पास आया।
हौले मुस्काया।

नकी मुस्कान का
साधा सा अर्थ समझ

उनके कुछ कहने से पहले ही
दाहिना अंगूठा

सस्नेह दिखाया।
वे वोले प्रेम से

पीठ थपथापकर
हे प्रिय शिष्य।

धन्य हो तुम।
पर जमाना बदल गया है।

क्या करुँ ?
मजबूर हूँ

दोनों अंगूठे के दान का
अब रूल बन गया है।

गुरु दक्षिणा हेतु
तैयार हो जाओ।

अपने नाम नूतन
इतिहास लिखबाओ।

मैने सादर कहा
हे गुरूजी

आपने ठीक कहा
जमाना नया आया है।

कुछ मुझे भी सिखाया है।
तुमसे ही नया मै

इतिहास लिखवाता हूँ।
अंगूठा कटाता नहीं

अंगूठा दिखाता हूँ।

 

उपयुक्त हास्य कविताएं स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है ।